Monday 18 December 2017

ये कलयुग है ,,

ये कलयुग है ,,द्वापर नहीं ..
कृष्ण बनने की चाहत लिए सभी हैं 
राधा भी चाहिए ..लेकिन ..
उसका नेह नहीं उसकी देह लगे प्यारी 
अवसर चाहिए ..
राह कोई भी हो ..चाह यही है
हाँ ...यह कलयुग ही है ..
यहाँ राधा तस्वीर में पुजती है
मन्दिर में पुजती है
ईमान में नहीं पुजती
पुज भी नहीं सकती
कहा न ...ये कलयुग है
यह नेह रस नहीं देह रस के आकांक्षी हैं धरा पर
इल्जाम हैं हर ईमान पर
यहाँ राधा हो ही नहीं सकती
हो भी जाये तो जी नहीं सकती
क्यूंकि ...वह तो व्यभिचारिणी हैं
कलंकिनी ...अशुचिता औरत है
कृष्ण बनने की ललक तो है ..लेकिन
न राधा का चरित्र पाच्य है
न कृष्ण का सुंदर मन .
चलो बहुत हुआ ,,
यहाँ बंधन और तलाक होते हैं
बाजार में सब हलाक होते हैं
दोस्त और दोस्ती के रंग चाक होते हैं
समझ नहीं आई न अभी ----
ये कलयुग है जनाब "
यहाँ रावण और कंस मिलेंगे हर देह में
जीवन अपभ्रंश मिलेंगे नेह में
न्यायालय हैं... वकील हैं
कागजी दलील हैं
कुछ लिखी हुई तहरीर हैं
मकान हैं लिबास हैं ..
बस गुनाह नेह का अहसास है
कहा न ...
ये कलयुग है
मीरा की खातिर नाग है
मोमबत्ती का राग है
स्त्री होना अभिशाप है .
अत्याचार बलात्कार हाहाकार सबकुछ है यहाँ
हर चौराहे पर खड़ा बाजार है यहाँ
हर कोई खरीददार हैं यहाँ
बिको या न बिको
कीमत लगती है बाजार में
सबको इंतजार है यहाँ
बोला न सबको ...
ये कलयुग है जी
त्रेता युग की बात मत करना
व्यर्थ लगेगा सीता का हरना
कैसे राम ले गए वापस
वो भी अनछुई
जहां नजर भेदती हो देह
कैसे जन्मे वैदेही कोई विदेह
सोचना मना है,,,
कहा न कलयुग है ये
---- विजयलक्ष्मी

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