Wednesday 3 May 2017

" हम तो अपनी मुफलिसी में रमजान मना लेते हैं ,

" हम तो अपनी मुफलिसी में रमजान मना लेते हैं ,
सजदे भी अता करते हैं , रब का नाम भी लेते हैं || "
 --------- विजयलक्ष्मी

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" मरहम की जरूरत जिन्हें हो उन्हें जख्म न देना प्रभु ,,
मेरे जख्म नासूर बनादे, जिन्दगी से मुलाकात तो होगी || "  --- विजयलक्ष्मी



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मुझसे मेरा पता खो गया है ,,
पुराना निशाँ वो दर्द दे गया है 
भीगाकर हमे खुद सो गया है 
खुश्क मौसम रंग जर्द दे गया है 
खामोश सी आवाज बो गया है 

कलम को शब्द कमजर्फ दे गया है ||
---- विजयलक्ष्मी

" कहदो सत्ताधारी को देश का बंटवारा नहीं होगा "

" कहदो सत्ताधारी को देश का बंटवारा नहीं होगा
काश्मीर सिरमौर हमारा हमसे न्यारा नहीं होगा ||

जितने भी गद्दार मिले सर कलम सभी की करवा दो
तिरंगे से चिढने वालों को देश-निकाला दिलवा दो ||

राष्ट्र गीत है शान हमारी ,मिटटी नहीं मिलाने देंगे ,,
हाथ खोल दो सेना के, दुश्मन को मार भगा देंगे ||

सच बतलाऊं दिल दुखता जब शाहदत की सुनते हैं
सपने पूरे हमारे हो वो कब कोई सपना बुनते हैं ||

हर जज्बात वतन पर न्यौछावर है जिनका
क्या दूं मन सोच रहा,,ये जन्म ऋणी रहेगा उनका ||

वीर वतन पर हैं कुर्बान हम नतमस्तक हैं उनके आगे ,
उऋण नहीं होना सम्भव हम नतमस्तक हैं उनके आगे ||

जान हथेली पर रखकर वो आगे को बढ़ जाते हैं ,
दुश्मन की छाती पर धर कदम शूलों से चढ़ जाते हैं ||

पत्थर बरसाने वालो को मत माफ़ करो बस साफ़ करो
न्यायालय और मानव हित सब सेना के साथ करो ||

जो बोलेगा राष्ट्र विरुद्ध गद्दार उसे घोषित करदो ,
फांसी का फंदा पहनाओ या बंदूक माथे धर दो ||
 " ---- विजयलक्ष्मी

" मुझे माटी से अनुराग तो है बशर्ते मेरे वतन की हो ,"

" मुझे माटी से अनुराग तो है बशर्ते मेरे वतन की हो ,
उस सीमा पर बंदूक उठालूँ बशर्ते मेरे वतन की हो .
छलनी दुश्मन का सीना करें बशर्ते जीत वतन की हो
जीवन का अंतिम गीत लिखूं बशर्ते प्रीत वतन की हो
"  ------ विजयलक्ष्मी    







उठो,एक शीश के बदले तुम दस ले आओ ,,
शब्दबाण को छोडो . कुछ करतब दिखाओ ||


हमको सेना प्यारी है सैनिक का अपमान नहीं 
ओ छप्पन इंची अब तो कुछ करके दिखाओ || 


या तो कह दो कुछ करने की औकात नहीं ..
या पाकिस्तान को उसकी अब औकात बताओ ||


हर सैनिक जीवन देने को तैयार खड़ा है यहाँ
पत्थरबाजी या गोलीबाजी जमींदोज कराओ ||


बहुत हो चुकी बाते , अब कुछ भी मंजूर नहीं
दुश्मन के खेमे में सेना का तांडव नाच कराओ ||
------- विजयलक्ष्मी