Monday 13 February 2017

" अब समझे हैं सबब उस बात का पल भर पहले "

अब समझे हैं सबब उस बात का पल भर पहले
जिंदगानी की तस्वीर बदलती है पलों में क्यूँकर ||

क्यूँ कहते थे भरने है कई रंग नए हमको अभी 
जान हाथों में है अभी बाकी कहा था ये क्यूँकर ||

टूटे या रहे कलम मेरी क्या फर्क हीं तुमको अमीत
तुम्हें जाना है चले जाओ हम मरें या जियें क्यूँकर ||

जिंदगी मौत से बदतर हों भी जाये तो गम क्यूँ
जीना बाकी और भी रंग है बाकी जियेगें ही क्यूँकर||

खामोशियों को आवाज नहीं देंगे नाम से तेरे
बर्बाद होना था तो भला आबाद अब होंगें क्यूँकर  ||
---- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment