Sunday 8 January 2017

" एक भारत –एक शिक्षा ..!!! -- आज की आवश्यकता !!"

एक भारत –एक शिक्षा ..!!!
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नहीं चाहिए मैकाले ,,
चाहिए अपना इतिहास अपना वर्तमान ,,
विदेशी शिक्षा नहीं, हमे चाहिए शिक्षा में हिन्दुस्तान || -- विजयलक्ष्मी



क्यूंकि .........................




भारतीय संविधान के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को शिक्षा पाने का अधिकार है।किन्तु प्राप्त आंकड़े कितने भयावह है यह बताने की आवश्यकता नहीं लगती चारो और बिखरी हुई असमानता, अशिक्षा ,बालश्रमिकों की संख्या अमीरी गरीबी ,विद्यालयी स्तर तो दूर प्राइमरी स्तर पर ही परिलक्षित होने लगती है चाय ,ढाबे ,,ईंट भट्टों के साथ घरों में भी बालश्रम की संख्या देखते ही बनती है इसे में शिक्षा की आवश्यकता और उसपर भी समान शिक्षा की अनिवार्यता गहन और वृहत विषय है ,,,जिसके द्वारा ही राष्ट्र को सुचारू रूप से विकास की एक निश्चित दिशा दी जा सकती है ,, आज तक की परिस्थियाँ तो चमगादड़ो का शहर प्रतीत होती हैं जहाँ सूरज का निकलना कठिन दिखाई दिया है |व्यर्थ के दिखावे छोडकर जमीनी क्रियान्वन द्वारा ही सुधार सम्भव है ,,अर्जुन के शैक्षिक कार्यक्रम के साथ एकलव्य को भी बिठाया जाये ,,दोनों के हाथ में समान धनुष-बाण पकड़ाए जाये ,,फिर निशाना साधने को कहा जाये ,,, तभी शिक्षा को सार्थकता प्रदान हो सकती है |प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य तथा तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा को सर्वसुलभ बनाया जाए एवं उच्च शिक्षा सभी की पहुँच के भीतर हो”कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धान्त है ,ये कार्य केवल सिद्धांतों तक सिमित न रहकर सभी शिक्षार्थियों तक पंहुचे भी इसका ध्यान रखना अनिवार्य हो |शिक्षा का उपयोग मानव व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए कैसे सम्भव है इसे मानवीय अधिकारों और बुनियादी स्वतंत्रता के लिए प्रयोग कैसे किया जाना चाहिए..माता-पिता और अभिभावकों को यह ज्ञान व् अधिकार हो कि वे जाने और समझे कि वो अपने बच्चों को किस तरह की शिक्षा देना चाहते हैं |शिक्षा के महत्व पर ग्रामीण एवं निम्न स्तर के लोगों को भी प्रेरित किये जाने की आवश्यकता है। शिक्षा के मौलिक अधिकार को कानूनी दायरों के बीच रखते हुए ..यथार्थ की धरा पर उतारने की अतीव आवश्यकता है ऐसी सभी सूचनाएँ जो लोगों के लिए समाधान प्रदान करें उनकी जानकारी देनी आवश्यक है यथा -बालिका शिक्षा /बाल-मजदूरों के लिए शिक्षा एवं संयोज़क पाठ्यक्रम

अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग व अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा
शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग, अपंग एवं विशेष बच्चों के लिए जीवन यापन सम्बन्धित शिक्षा तथा शिक्षा व महिलाएँ
प्राथमिक शिक्षा ऐसा आधार है जिसपर देश तथा इसके प्रत्येक नागरिक का विकास निर्भर करता है। यद्पि हाल के वर्षों में भारत ने प्राथमिक शिक्षा में नामांकन, छात्रों की संख्या बरकरार रखने, उनकी नियमित उपस्थिति दर और साक्षरता के प्रसार के हेतु प्रयास भी किये ..किन्तु उनके लागू करने में शिथिलता रही है ।रहन-सहन एवं खान-पीन का निम्न-स्तर बच्चों को अक्सर विद्यालय से दूर रखता है जहाँ भारत की उन्नत शिक्षा पद्धति को भारत देश के आर्थिक विकास का मुख्य योगदानकर्ता तत्व माना जाता है, वहीं भारत में आधारभूत शिक्षा की गुणवत्ता फिलहाल एक चिंता का विषय है।राष्ट्र निर्माण में युवा पीढ़ी की अहम भूमिका है। इस संदर्भ में भारत की स्थिति अत्यधिक शर्मनाक और हास्यास्पद ही मानी जा सकती है। देश में लगातार हो रहे नैतिक एवं शैक्षणिक पतन से हमारे युवा वर्ग पर.भारत में 14 साल की उम्र तक के सभी बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना संवैधानिक प्रतिबद्धता है। देश के संसद ने वर्ष 2009 में ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम' पारित किया था जिसके द्वारा 6 से 14 साल के सभी बच्चों के लिए समान शिक्षा एक मौलिक अधिकार हो गई किन्तु आज भी असमानता सबके सामने मुहं बाये खड़ी है । और देश में अभी भी आधारभूत शिक्षा को सार्वभौम नहीं बनाया जा सका है।
प्राचीनकाल की ओर देखें तब भारत में ज्ञान प्रदान करने वाले गुरु थे, अब शिक्षक हैं। शिक्षक और गुरु में भिन्नता है। गुरु के लिए शिक्षण धंधा नहीं, बल्कि आनंद है, सुख माना जाता था शिक्षण संस्थाए कर्तव्योंन्मुख होती थी ।गुणवतापुर्ण शिक्षा तभी सम्भव है जब कि युवाओं को भारतीय दर्शन की अनिवार्य शिक्षा दिया जाय। बच्चों को कम से. कम गीता का कर्म विज्ञानं और बौध. दर्शन की शिक्षा दिया जाय ताकि मानव का निर्माण हो सके। आशा नहीं विशुद्ध प्रयास न होने के कारण समाज मे हिंसा और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहता है।
भारत में शिक्षा की व्यवस्था ठीक नही है और सरकार का रवैया भी सरकारी स्कूल के लिए ठीक नही है अगर सरकार शिक्षा को ठीक करना चाहती है तो सबसे पहले भारत में एक समान शिक्षा दे चाहे वो सरकारी स्कूल हो या प्राइवेट हो अथवा अर्ध-सरकारी आधी से ज्यादा शिक्षा तो इस एक कदम से एकदम ठीक हो जाएगी और फिर सरकारी स्कूल को ठीक सुविधा दे तो सरकारी स्कूल तो अपने आप ठीक हो जायेंगे फिर रही बात प्राइवेट स्कूल की तो उसके लिए सरकार ऐसा नियम बनाये की सरकारी स्कूल भी चलते रहे और प्राइवेट भी लेकिन सारी परीक्षा सरकारी स्कूल में ही हो और पेपर भी सरकार ही ले ताकि शिक्षा को बेचा न जा सके तब ही शिक्षा ठीक हो सकती है वरना शिक्षा सुधारना बेहद मुश्किल काम है और एक बात और विशेष शिक्षक द्वारा विद्यार्थी को सजा देने का भी अधिकार मिलना चाहिए ताकि वो विद्यार्थी को सुधारने का हर संभव प्रयास कर सके





सरकारी स्कूल के अध्यापक ज्यादा वेतन लेकर भी स्कूल का वातावरण सही नहीं बना पा रहे है जबकि प्राइवेट स्कूल के अध्यापक कम वेतन में भी अच्छा वातावरण बना रहे है जिस से प्राइवेट स्कूल का स्टैंडर्ड अच्छा है और सबका रुझान उसी तरफ है यदि सरकारी अफसरों के बच्चे भी सरकारी स्कूल में जाने लगेंगे तो स्टैंडर्ड वैसे ही सुधर जायेगा और सबको समानता का अधिकार देना चाहिए अच्छे पढ़ने वाले बालक, बालिका को सबको सपोर्ट करना चाहिए |
इसके अलावा हम अपने बालक /बालिकाओं को किस प्रकार की शिक्षा दे रहे हैं ..यह भी विचारणीय होना चाहिए .अलग विद्यालय ,राज्य अथवा भाषा के होने पर भी समान पाठ्यक्रम पर ध्यान देना विशेषकर आवश्यक है ,,
जाति,धर्म के आधार को नहीं राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाली शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए ,,प्रत्येक बच्चे में राष्ट्रिय सम्मान की भावना में वृद्धि की जा सके ,, विद्यालयी शिक्षा नैतिक-आधार के साथ होनी चाहिए ! प्रत्येक विद्यार्थी को मौलिक अधिकार ही नहीं अपितु मौलिक कर्तव्यों का भी ज्ञान व् उन्हें पूर्ण करने की तत्परता भी शामिल होनी चाहिए,
शिक्षा का फीस लेनदेन भी सरल हो आरक्षण की व्यवस्था आर्थिक आधार पर शिक्षा के क्षेत्र में होना चाहिए जिससे कोई भी होनहार विद्यार्थी अर्थाभाव के कारण शिक्षा अधूरी न छोड़े क्यूंकि राष्ट्र की नैसर्गिक प्रतिभा का हनन राष्ट्र का हनन होता है जिस कारण राष्ट्र विकास की पूर्ण रफ्तार पकड़ने में असहज होता है जाति धर्म की वैमनस्यता को कोई स्थान नहीं दिया जाने चाहिए रंग रूप द्वेष-विद्वेष नहीं सरल सहज उचित शिक्षा ही भारत को विश्वगुरु पदासीन करा सकने की सामर्थ्य रखती है संस्कृति,,संस्कार ,संसाधन का उचित आदर्श प्रयोग किसी भी राष्ट्र की उन्नति का मूल होता है,,ईमानदारी और मेहनत इंसानियत की पहली सीढी होती है जिसकी नींव शिक्षण के समय ही भरी जाती है . 
क्या ये उचित है धर्म की शिक्षा नैतिक और संस्कार के आधार पर उचित है किन्तु राष्ट्रीयता के स्तर पर भेदभाव उत्पन्न करती है.जिसे खत्म कर वास्तविक इतिहास का ज्ञान दिया जाये 
बच्चों के कोमल-निश्च्छल मन मे हिन्दुओं मुस्लिम सिख या ईसाईयों के प्रति दुर्भावना भरने का यह खेल बंद हो और राष्ट्र का पूर्ण विकास हो और विद्यार्थियों का सर्वांगीण 
शिक्षा में पाठ्यक्रम का अंतर विद्यार्थियों को दो श्रेणी में बाँट रहा है एक शासक वर्ग दूसरा श्रमिक वर्ग जो किसी भी राष्ट्र को गर्त की लेजाने के लिए काफी है शिक्षा का परिमार्जन मूलभूत आधार पर किया जाना आवश्यक है न की अमीर-गरीब या छोटे-बड़े के आधार पर शैक्षिक संस्थाओ में समाजवाद अर्थात समानता का माहौल तैयार किया जाना अनिवार्य हो |
हमारी शिक्षा प्रणाली में एक कमी ये भी है.देश की सभी गणनाओंके लिए प्राइमरी के अध्यापको को बंधुआ पद्यति पर कार्य पर लगा दिया जाता है जिससे पढ़ने पढाने का समय ही नहीं बचता और शिक्षा के क्षेत्र में किये गये प्रयास विफल होते हैं परिणाम ढ़ाक के तीन पात प्राइवेट विद्यालयों और सरकारी विद्यालयों में बहुत सी आधारभूत असमानताए है जिनपर सुधार हेतु ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है |

निश्चित पाठ्यक्रम राष्ट्रव्यापी भाषाओ में प्रत्येक राज्य में समानता से लागू एवं कार्यान्वित किया जाये तभी राष्ट्र कल्याण सम्भव है और प्रत्येक नागरिक को शिक्षा प्राप्ति का समान मौका उपलब्ध किया जाये प्रत्येक शिक्षार्थी अपने मनोकूल ज्ञान प्राप्त कर सके व्यवस्था की जानी चाहिए राष्ट्रहित भेदभाव से दूर रहकर ही शिक्षण कार्य पूर्ण मनोयोग से प्रशिक्षित अध्यापको द्वारा किया जाना सुनिश्चित किया जाना ही चाहिए ,,जिसमे इमानदारी बरती जाये |





"धार तो तेज होनी चाहिए
अगूंठे एकलव्य के या द्रोण के कटने चाहिए
अर्जुनों की तलवार गर चमक है
तो चलेगी साथ में जेब
वर्ना गद्दीनशीनों की कटनी चाहिए
मैल भर के जो उठाये आँख को ..
शूल उसके पार उतार दे. चलो
वैश्यों की दुकानों को ताला लगा ...कर्म बदल देते है चलो ..
घूसखोरों की औलादों को बाप के साथ.. जेल की हवा तो दिखा
क्या कहूँ ....दरोगा भी जिगर पे पत्थर होना चाहिए ....
द्रोण को कला गर आती नहीं ...रोटी फिर क्यूँ चाहिए ..
आदमी को आदमी की बोटी भला क्यूँ चाहिए..
देख ले सम्भल जा अभी ...वक्त अभी निकला नहीं ..
सूरज को कह से निकल अब ..समय बदलना चाहिए
ज्ञान का दिया ..अंधेरों भी जलना चाहिए
चल , बर्तनों की खनक कान बर गूंजेगी जरूर
लेखनी की धार ... तलवार बन भाजेंगी .. जरूर
एकलव्य अंगूठे क्यूँ दे भला अपने ....
जेब से नोटों की गड्डी...फांसी लगनी चाहिए ..
चल उठ ,साथ चलेगा क्या ....रौशनी कोई दीप से तो जलनी चाहिए
आग जरूरी है तू जला मैं जलाऊँ ...आग वैश्या बनी दुकानों में लगनी चाहिए ..
क्रांति ...की आग ..हाँ अब तो ..लगनी चाहिए
||"
------ विजयलक्ष्मी





1 comment:

  1. दिनांक 10/01/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
    आप भी इस प्रस्तुति में....
    सादर आमंत्रित हैं...

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