Friday 10 June 2016

" झूठ बोल रहे...." इन्सान हैं... किन्तु पशुवत ही चरते हैं""

" कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं मानव को मिटाने में,
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए है किसानों को मरवाने में 
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं आदिवासियों को ललचाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं जोरजबर्दस्ती धर्म बदलवाने में 
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं भूखे नंगो को नुचवाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं झूठ को सत्य बनाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं झूठ बोलकर सत्ता हथियाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं औरत को खत्म करवाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं हया शर्म मिटाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं न्यायालय को व्यवसाय बनाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं गरिमा धर्म की मिटाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं झूठे स्वप्न दिखने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं शिक्षा को बिकवाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो तुले हुए हैं धर्मस्थल को कत्लगाह बनाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो भूले इंसानियत पहन वर्दी बैठे थाने में
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जिनके आँखों पर काले पर्दे चढ़े हुए
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो अधर्मी बने हुए
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो स्वार्थवेदी पर चढ़े हुए
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो बेटी को खेत रहे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो मानव को ही रेत रहे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको धर्मग्रंथो को तोल रहे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो खुद को धर्मगुरु बोल रहे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जिनको मानवता याद नहीं
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जिनकी सच्ची फरियाद नहीं
कभीधर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो मन में जहर को घोल रहे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो स्वार्थ की भाषा बोल रहे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो खंजर लेकर डोल रहे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो आतंक के आसन पर बैठे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको खुद खुदा ही बन बैठे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो दौलत पर हैं ऐंठे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जिनके मन खोट भरे
कभी धर्मग्रन्थ पढाओ उनको जो मानवता पर चोट करे ..
जो अहिंसा की गा गाकर हिंसा करते हैं ...
झूठ बोल रहे....." इन्सान हैं... किन्तु पशुवत ही चरते हैं" 
" ----- विजयलक्ष्मी

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