Monday 11 April 2016

" शांति देश को मिली न अबतक, शांतिदूत पर गांधी थे "

नेहरु गांधी का पता नहीं आजाद भगतसिंह आंधी से ,,
जब हस्ताक्षर की बारी थी बस एक वहां पर गांधी थे ..


शहादत वीरों की याद आई तस्वीर उन्ही की चस्पा हुई..
बंटते देश की तस्वीर दिखी जो खड़े वहां पर गांधी थे


आजादी का झंडा लेकर कूच किया या मार्च किये 
जब मुखबिरी की बारी थी नेहरु अंग्रेजी घर बाँदी थे ..


वो जलियांवाला बाग़ सुना,लहू की नदिया बहती थी
कालापानी सावरकर को ,,खड़े आजादी पर गांधी थे ..


तीन पीढ़ियाँ राज किया क्या जश्न ए बर्बादी का
सच- झूठ बना उल्टा फटे विधेयक जहां पर गाँधी थे..


इतिहास पलट कलम को तो तौला था पुरुस्कारों से
शांति देश को मिली न अबतक, शांतिदूत पर गांधी थे
 .. ---------- विजयलक्ष्मी

1 comment:

  1. दे दी हमें बरबादी चली कैसी चतुर चाल!
    सावरमती के सन्त (?) तूने कर दिया कमाल!
    वाह! विजय लक्ष्मी, वाह!!

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