Wednesday 9 December 2015

" जाँचकर्ता ईमानदार क्यूँ पीछे लगाये तुमने "

" वो निशाँ धुंधलाये कब जिनसे तुम गुजरे ,,
हमे छाँव वही मिली जो वृक्ष लगाये तुमने ||

वाह चापलूसी, कहानी पुरानी किरदार नये,,
रसोइये औ नौकर गद्दी पर ठहराए तुमने ||

कौन बतायेगा है सियासत कैसी नेतागिरी ,,
न्याय पुकारे, संसद में जाम लगाये तुमने ||

चप्पलों की बात में भला क्या धरा है अब ,,
स्वार्थहित सधे राजनैतिक दांव लगाये तुमने ||

जांचने करने को कहा था हमने तो मजाक में,,
न्यायिक जमाती सच में पीछे लगाये तुमने ||

मानो सियासी जालसाजी है पुश्तैनी धंधा ,,
जाँचकर्ता ईमानदार क्यूँ पीछे लगाये तुमने ||  "
---- विजयलक्ष्मी

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