Monday 27 July 2015

कलाम को सलाम || जयहिंद || ... जय भारती का लाल ||


कलाम को सलाम || जयहिंद ||
...
जय भारती का लाल ,
ऊँचा किया माँ का भाल 
मिसाइल मैंन या इस्माइल मैन ....
तुम्हे कभी मुरझाते नहीं देखा ,,
हर लम्हे से सीखते मुस्कुराते ही देखा
खौफनाक मुश्किलें कदम बढ़ाते ही देखा
गरीबी की निम्नतम रेखा से उठ आसमा छूते देखा
कलमे आयतों की जुबां से आगे वतन पर मिटते देखा
मजहबों को तुम्हारे नाम पर सिमटते देखा
आसमा के उस छोर उगते ख्वाबों को संवरते देखा
इन्सान में इंसानियत को उभरते देखा
शिद्दत से बदलती किस्मत को देखा
मिसाइल मैन या इस्माइल मैन..
तुझे कभी मुरझाते नहीं देखा
तुम फूल हो वतन बगीचे का
जिसे पतझड़ में भी खिलखिलाते देखा
जय भारती का लाल ,
ऊँचा किया माँ का भाल
कलाम को सलाम || जयहिंद ||
---- विजयलक्ष्मी


विलक्षण व्यक्तित्व हमेशा के लिए अलविदा कह गया. भारत की 'अग्नि' मिसाइल को उड़ान देने वाले मशहूर
वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम नहीं रहे. शिलॉन्ग आईआईएम में लेक्चर देते हुए उन्हें दिल का दौरा पड़ा. आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर कुछ नहीं कर सके. 83 वर्ष के कलाम साथ छोड़ चुके थे
.
एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम था. एक मछुआरे का बेटा अखबार बेचा करता था. यह कलाम के जीवन का शुरुआती सफर था. वे देश के चोटी के वैज्ञानिक बने और फिर सबसे बड़े राष्ट्रपति
पद को भी शोभायमान किया. वे करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत रहे. अपनी वाक कला से हजारों की भीड़ को मंत्र-मुग्ध करते रहे. युवाओं में नया करने का जोश और हौसला भरते रहे. दो दर्जन किताबों में अपने अनुभव का निचोड़ पेश किया. लेकिन अंत तक ट्विटर प्रोफाइल पर खुद को एक 'लर्नर' बताते रहे.


ट्विटर पर उनका परिचय इस तरह है,
'साइंटिस्ट, टीचर, लर्नर, राइटर. भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में सेवाएं दीं. 2020 तक भारत को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिये काम कर रहा हूं.'
जानिए कलाम के बारे में 10 खास बातें:


1. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ.
2. पेशे से नाविक कलाम के पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे. ये मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे. पांच भाई और पांच बहनों वाले परिवार को चलाने के लिए पिता के पैसे कम पड़ जाते थे 

३. शुरुआती शिक्षा जारी रखने के लिए कलाम को अखबार बेचने का काम भी करना पड़ा.
4. आठ साल की उम्र से ही कलाम सुबह 4 बचे उठते थे और नहा कर गणित की पढ़ाई करने चले जाते थे. सुबह नहा कर जाने के पीछे कारण यह था कि प्रत्येक साल पांच बच्चों को मुफ्त में गणित पढ़ाने वाले उनके टीचर बिना नहाए
आए बच्चों को नहीं पढ़ाते थे. ट्यूशन से आने के बाद वो नमाज पढ़ते और इसके बाद वो सुबह आठ बजे तक रामेश्वरम रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर न्यूज पेपर बांटते थे. 

5. कलाम ‘एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी’ में आने के पीछे अपनी पांचवी क्लास के टीचर सुब्रह्मण्यम अय्यर को बताते हैं.
वो कहते हैं, ‘वो हमारे अच्छे टीचर्स में से थे. एक बार उन्होंने क्लास में पूछा कि चिड़िया कैसे उड़ती है? क्लास के किसी छात्र ने इसका उत्तर नहीं दिया तो अगले दिन वो सभी बच्चों को समुद्र के किनारे ले गए. वहां कई पक्षी उड़ रहे थे. कुछ समुद्र किनारे उतर रहे थे तो कुछ बैठे थे. वहां उन्होंने हमें पक्षी के उड़ने के पीछे के कारण को समझाया साथ ही पक्षियों के शरीर की बनावट को भी विस्तार पूर्वक बताया जो उड़ने में सहायक होता है. उनके द्वारा समझाई गई ये बातें मेरे अंदर इस कदर समा गई कि मुझे हमेशा महसूस होनलगा कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूं और उस दिन की घटना ने मुझे जिंदगी का लक्ष्निर्धारित करने की प्रेरणा दी. बाद में मैंनतय किया कि उड़ान की दिशा में है अपना करियर बनाउं. मैंने बाद में फिजिक्स की पढ़ाई की और मद्रास इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में पढ़ाई की.’
6. 1962 में कलाम इसरो में पहुंचे. इन्हीं के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहते भारत ने अपना पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 बनाया. 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के समीप स्थापित किया गया और भारत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया. कलाम ने इसके बाद स्वदेशी गाइडेड मिसाइल को डिजाइन किया. उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें  भारतीय तकनीक से बनाईं.
7. 1992 से 1999 तक कलाम रक्षा मंत्री के रक्षा सलाहकार भी रहे. इस दौरान वाजपेयी सरकार ने पोखरण में दूसरी बार
न्यूक्लियर टेस्ट भी किए और भारत परमाणु हथियार बनाने वाले देशों में शामिल हो गया. कलाम ने विजन 2020 दिया. इसके तहत कलाम ने भारत को विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की के जरिए 2020 तक अत्याधुनिक करने की खास सोच दी गई. कलाम भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे.
8. 1982 में कलाम को डीआरडीएल (डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट लेबोरेट्री) का डायरेक्टर बनाया गया. उसी दौरान अन्ना
यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया. कलाम ने तब रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वीएस
अरुणाचलम के साथ इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईजीएमडीपी) का प्रस्ताव तैयार किया. स्वदेशी मिसाइलों के विकास के लिए कलाम की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई.इसके पहले चरण में जमीन से जमीन पर मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइल बनाने पर जोर था. दूसरे चरण में जमीन से हवा में मार
करने वाली मिसाइल, टैंकभेदी मिसाइल और रिएंट्री एक्सपेरिमेंट लॉन्च वेहिकल (रेक्स) बनाने का प्रस्ताव था. पृथ्वी, त्रिशूल,  आकाश, नाग नाम के मिसाइल बनाए गए. कलाम ने अपने सपने रेक्स को अग्नि नाम दिया. सबसे पहले सितंबर 1985 में त्रिशूल फिर फरवरी 1988 में पृथ्वी और मई 1989 में अग्नि का परीक्षण किया गया. इसके बाद 1998 में
रूस के साथ मिलकर भारत ने सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने पर काम शुरू किया और ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई. ब्रह्मोस को धरती, आसमान और समुद्र  कहीं भी दागी जा सकती है. इस सफलता के साथ ही कलाम को मिसाइल मैन के रूप मे प्रसिद्धि मिली और उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
9. कलाम को 1981 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण और फिर, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न प्रदान किया. भारत के सर्वोच्च पर पर नियुक्ति से पहले भारत रत्न पाने वाले कलाम
देश के केवल तीसरे राष्ट्रपति हैं. उनसे पहले यह मुकाम सर्वपल्ली राधाकृष्णन और जाकिर हुसैन ने हासिल किया.



मुझे लगा। …!
१- मेरे कमरे में बिस्मिल्लाह खान की शहनाई का संगीत बज रहा था । यह संगीत मुझे एक दूसरे काल, एक दूसरी जगह ले गया । २- मुझे लग रहा था कि मैं रामेश्वरम गया और अपनी माँ से लिपट गया । मेरे पिताजी अपनी अँगुलियों से मेरे बालों को सहला रहे हैं । 
३- मेरे मार्गदर्शक जलालुददीन ने मस्जिदवाला गली में जमा भीड़ को यह खबर सुनाई है ।
४- मेरी बहन जोहरा ने मेरे लिए ! विशेष मिठाई बनाई है । 
५- पक्षी लक्ष्मण शास्त्री ने मेरे माथे पर तिलक लगाया है ।
६- फादर सोलोमन ने मुझी पवित्र क्रॉस छूकर आशीर्वाद दिया है ।
७- मैंने देखा कि प्रो.साराभाई उपलब्धियों को देखकर मुस्करा रहे हैं । एक छोटा वृक्ष, जो उन्होंने बीस साल पहले लगाया था, अब एक बड़ा वृक्ष वन गया है, जिसके फलों का आनंद देशवासी ले रहे हैं ।
" यह उद्गार थे श्री अब्दुल कलाम साहब के, जब संन् 1981 के गणतंत्र दिवस के अवसर की पूर्व संध्या 25 जनवरी को प्रो. यू. आर. राव के सचिव महादेवन ने उन्हें दिल्ली से फोन करके बताया कि गृह मंत्रालय ने, पदम् भूषण सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा की है । वह अपनी आत्मकथा " अग्नि की उड़ान " में कहते हैं - जब मैंने डॉ. ब्रह्मप्रकाश को फोन किया और इसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया । डॉ. ब्रह्मप्रकाश ने इस औपचारिकता के लिए मुझे डाँटते हुए कहा,' मुझे लग रहा है जैसे मेरे बेटे को यह सम्मान मिला है ' उनका यह स्नेह मुझे इतना गहरे तक छू गया कि मैं अपनी भावनाओं को और ज्यादा नियंत्रण में नहीं रख सका ।उद्धत संदर्भ - श्री अब्दुल कलाम साहब की आत्म कथा " अग्नि की उड़ान " से लिए गए ।

Monday 20 July 2015

" हामिद मुकर न जाये "

" काश हम भी आजादी के सिपाही बन जाते ,
हिंदू मुसलमां से पहले इंसान बन जाते .

ये किस्से जो लहू से लिखे जा है आज तक ,
इंसानी मुहब्बत के जज्बों से लिखे जाते .

न रोती इंसानियत खड़ी चौराहों पे इस कदर ,
न लाशों को किसी की काँधे ढो रोते हुए जाते .

गीत वतन में होते अमन ओ चैन के मेरे ,
खुशियों को हम भी आपस में बाँट पाते .

जय राम जी की कह ,वन्दे मातरम दिलों में ,
वतन की अकीदे में ,ईद मुबारक कह जाते ."

-- विजयलक्ष्मी


" ईद आ गयी लेकिन ...हामिद नहीं पहुंचा ...चिमटे के बिना बूढी दादी की अंगुलियाँ आज भी जल रही हैं ....उस पर संगीनों से उगलती आग का साया ... उस पर ईद का बाजार और इदी में क्या मिलेगा सबको बस यही इन्तजार ...क्या अमन चैन मिलेगा ....?" ----- विजयलक्ष्मी


पूरा मक्कार

और
ईमान से
झूठा
बिन पेंदी का 
लोटा
नियत का 
खोटा !!
नाम रख लिया
पाक,
काम करता है
नापाक
आतंकियों को देता 
पनाह 
जैसे 
भाई हो इसका
छोटा !! 

---- विजयलक्ष्मी

" आतंकी 
हमलावरों की 
एक सजा,
" फांसी लटकाओ ",
जिसको हो 
इस बात का गिला 
संग
लटक जाओ ,
आओ
राष्ट्र के नाम की
तख्ती लगाये
देशद्रोहियों को
बाहर भगाओ
जो
वतन का नहीं ,,
उसका
टिकिट कटाओ
भीष्म चाहिए
मगर
दुर्योधन स्वीकार नहीं
दुशासन जैसे दुष्टों को
करना अंगीकार नहीं
कर्ण से दानी 
और 
ज्ञानी मिले
लेकिन
मृत्यु अभिमन्यु की
चक्रव्यूह में स्वीकार नहीं
धृतराष्ट्र रहे राज्य में
लेकिन
राजा स्वीकार नहीं
".
--- विजयलक्ष्मी


" मैं भारत की बेटी 
मुझको डर है ,
कहीं हामिद 
आतंकी न बन जाये ,
इंसानियत का जामा 
खंजर में बदल न जाये ,
हमने ईद की इदी में 
शांति चाही सदा ,,
जाने क्यूँ सोचकर डर लगता है 
" हामिद मुकर न जाये "
बस एक दुआ मांगी है उठाकर हाथ ,,
हामिद दूर तक न निकल जाये ,
सुनता हो गर आवाज ....
" लौट कर घर आ जाये " "
---- विजयलक्ष्मी

Monday 13 July 2015

" गृहस्थी माँ की ,,जेवर कपड़े खाना रहना सारी आजादी ..लेकिन ....."

कब छोडोगे छलना ..


सुना है -औरत नाच रही है नंगई नृत्य ,

बताओ तो - करता कौन है है यह कृत्य .
सुना है - औरत बिक रही है सरे बाजार ,
बताओ तो - क्यूँ हों गए हैं ऐसे आसार .
सुना है -वक्त की धार कुछ कुंद हों चली ,
बताओ तो - क्यूँ रौंदी जाती है खिलने से पहले कली .
सुना है - औरत हों गयी बदकार ,
बताओ तो - कौन करता  है उसका व्यापार .
सुना है - समाज खराब हों रहा है ,
बताओ तो - किसका दिमाग खराब हों रहा है .
सुना है -कीमत लगी है शरीरों की ,
बताओ तो - इबारत किस्मत में लिखी हुयी तकदीरों की .
सुना है - औरत हिस्सा है बराबर ही घर का ,
बताओ तो - कभी दिया है दर्जा क्या बराबर का .
सुना है - औरत घर की रानी होती है ,
बताओ तो - क्यूँ दुर्गति औरत की ही होती .
चलो बंद कर दो औरत का घर निकलना ,
बस एक यही हल है लगता तुमको बाकी ,
हे पुरुष !तुम इस निर्णय को न कभी बदलना...
औरत को स्वामिनी कहकर बताओगे क्या कब छोडोगे छलना 
------..विजयलक्ष्मी 



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" उम्र का चिन्तन करूं या अहसास का
नारी की विवशता को कोई नहीं समझता ..कभी कभी तो खुद भी नहीं
निर्णय क्यूँ नहीं ले लेती कोई ...मगर कैसा निर्णय
धर्माचरण के अनुसार पीछे चलने का या अपने को जिन्दा रखने का
मरना तो दोनों ही बार है ,,एक में खुद की नजर में दूसरी में समाज की नजर में
एक नजर औरभी है रिश्ते नातेदारों की नजर
और औरत होना जितने बड़ेगर्व की बात है उतना बड़ा अभिशाप भी है
क्यूँ गलत कह दिया कुछ ..?
हाँ हो सकता है लेकिन....
कुठाराघात ही तो है उसे जन्मने से पहले ही संघर्षरत होना है..
यद्यपि कानून है किन्तु मृतप्राय से,
जन्म से पहले लिंग जाँच असम्भव लेकिन.....मंत्रीसंतरियों के यहाँ ज्यादातर लडके हीक्यूँ ?
अजी दौलत वालों के घर लडकों का ठेका होता है मेज के और मिलनसारिता का ,,
सबूत मत माँगना ...ढूंढें से भी नहीं मिलेगा.
माँ ऊँचे घराने की बहु होकर आजाद तो है लेकिन आखिरी निर्णय मुखिया का
गृहस्थी माँ की ,,जेवर कपड़े खाना रहना सारी आजादी ..लेकिन जीवन के निर्णय.. मुखिया के
सांसे माँ की सोच माँ की लेकिन ...उनपर अमल करने की आजादी ..मुखिया की
नवजीवन के सृजन और प्रसव का माध्यम तो है लेकिन अंतिम हाँ या ना निर्णय मुखिया का
हाँ यही है हमारे देश की औरतों की आजादी ,,रोटी खा और घर सजा लेकिन सोचना मना
विचारों को सामने लाना मतलब अनजाम भुगतने को तैयार रहो ,,
बीमार होकर मर सकती हो ,
एक्सीडेंट हो सकता है ,
पागल भी हो सकती ,
कुछ भी नहीं तो आखिरी हथियार सोसाईट ..वो भी लिखित बयान के साथ जिससे बाकि सब आजाद ,
जिसपर कोई रोक नहीं
हे औरत , इतनी आजादी के बाद भी पुरुष पर इल्जाम ,..सुधर |
सामाजिक सुरक्षा ,
जीवन सुरक्षा
भरण पोषण सुरक्षा
दैहिक भौतिक सुरक्षा ...फिर भी इल्जाम पुरुष पर ,....सुधर |" ---- विजयलक्ष्मी

" समभाव मरता दिखे क्यूँ अमरनाथ की राह पर "

" सर पे टोपियाँ रखकर टोपी पहना रहे हैं लोग ,
ईमा खो चुका जिनका मुलम्मा चढ़ा रहे हैं लोग 
कितना भरोसा रखे वतन वाले इन नदीदों का 
वतनपरस्ती की आड़ में दुश्मनी निभा रहे हैं लोग
समभाव मरता दिखे क्यूँ अमरनाथ की राह पर 
कोई तो बढ़कर बताओ वहां क्यूँ पत्थर बरसा रहे हैं लोग
सुना है सवाब का महिना रमजान होता है ,,
कोई बताये फिर क्यूँ मन्दिर ढहा रहे हैं लोग
शायद इंसानियत इन्सान के भीतर से मर गयी
इसीलिए धर्म के नामपर बंदूकें उठा रहे हैं लोग
"------ विजयलक्ष्मी

Saturday 11 July 2015

" किस पुरुष पर नाज करे नारी ..जिसने वन भेज दिया या जिसने चौपड़ में बेच दिया "

" एक लम्पट एक सम्पट जनता करे गुहार 
एक राजा एक खाजा बाकि सब आचार 
चपेट चपेट रोटी खाई भूख क्यूँ है बीमार 
अजी मरने वाला भूखा कैसे मरा ,,
राजा का चलता भंडारा...पर थाली का खेल निराला था राजा ही बांटने वाला था 
बोले चंदा का झिंगोला सिलवाओ क्यूँ होता है आधा अँधा हड़ताल पर बैठ जाओ
मंत्री में आदेश दिया समन्दर किनारे बाढ़ लगाओ ,,
ज्वार भाटा में उठते पानी का वजन करवाओ
गिरते समन्दर के मरहम लगवाओ ..खर्चे की वसूली जनता की जेब से खा खाकर मुटिया गयी है
हनुमान लंका गया था अपना पैर क्यूँ न धरा था ...अंगद से कितना कमिशन तय करा था
युधिष्ठिर ने झूठ बोला सबको पता है दुर्योधन झूठ का बना था भीष्म को कहना मना था
कृष्ण की चातुरी महाभारत न रोक सकी ,,
अभिमन्युं की मृत्यु पर काल को टोक सकी ,वहीँ उत्तरा का गर्भ ठहरा गया ,,,
अश्व्थामा का अस्त्र्र लीलकर भी ठहर गया ..
हाँ रावण आतातायी था ,,उठाकर लाया नार पराई था ,,
लेकिन मर्यादावादी था श्राप से सहमा था या मौत का उत्तरदायी था
जिसने शिव से अमृत को पाया था ..सच कहना क्यूँ सीता को लाया था ,
सीता क्या सचमुच चंडी थी ,क्यूँ अर्जुन की कवच रूप शिखंडी सी ..
योद्धा युद्ध को हार रहा ...किन्नर के पीछे से मार रहा ,
क्यूँ बाली को धोखे से मारा ,,क्यूँ विभीषण दाग बना लंका का पाया राज मगर लंका का
किसने मारा किसने तारा सीता फिर भी वनवासिन थी ,
जनता की बातों ने डसा उसे ,,
किस पुरुष पर नाज करे नारी ..जिसने वन भेज दिया या जिसने चौपड़ में बेच दिया
हुआ करे योद्धा अर्जुन ,,और युधिष्ठिर सत्य का रहे पुजारी ,
सतयुग तारा को बेच गया ,,
सीता त्रेता की मारी थी
द्वापर में द्रोपदी चीरहरण
कलियुग अलग हुआ कैसे अब हठात बलात्कार की मारी है
अंतर्मन में झाँक पुरुष ...औरत को कम मत आँक पुरुष
माना आया तेरा राज पुरुष ,,औरत बिन नहीं साज पुरुष
" ---- विजयलक्ष्मी

" गधे घोड़े नहीं ...हांकना है तो हाथी को हांककर दिखाइए "

" हिंदी साहित्य में भिन्न विधाएं ...आखिर तक पुरानी लकीरे पीटीये ...
कभी उत्तर पंथी साहित्य के नाम पर कभी दक्षिण पंथी कलम को लेकर ...
जिन सीमाओं को एक बार तय कर दिया .....बस कर दिया ..
उसका विस्तार क्यूँ ?.........
और 
अगर यही पूछे कि विस्तार क्यूँ नहीं ....
क्यूँ न साहित्य को आजाद कर दिया जाये कुछ बेड़ियों से ....
साहित्य अर्थात जो सहित ही ...मतलब साथ लेकर चले मगर
..किसे ....राजाओं के भाट चारण नहीं ...
प्रगति को आज की जरूरत को
भारतीय छाप को ..
मानव के संताप ..
जीवन के अधुनाधिक माप को
थर्मामीटर के पैमाना बदलकर नये रूप को प्राप्त हो गया लेकिन ...
साहित्य आज भी स्त्री सौन्दर्य में ही रीझता दिख रहा है .
राजाओ की चाटुकारिता और पासों की चौपड़ ..
वह रे इंसानी फितरत अँधा बांटे रेवड़ी ...तो देगा भी किसे .......?
मुझे तो नहीं मिलनी ..
जब साहित्य का अर्थ नहीं आता तो बहस क्यूँ ?..ये भी सवाल है
क्या करें केजरीवाल पार्टीवाल हो गये ,,राहुल परिवारवाल हो गये
अखिलेश उत्तरप्रदेश का क्लेश तो फिर क्यूँ हो नवीं समावेश
रोइए ..या गाइए ..मगर हमारी हिंदी को बचाइए
गधे घोड़े नहीं ...हांकना है तो हाथी को हांककर दिखाइए
वरना व्यर्थ खड़े गाल मत बजाइए ..
अजी मुफ्त के चन्दन में लिप्त सत्ता से चिपक जाइए
" ----- विजयलक्ष्मी

" रूह परखे रहमत को क्या देखे बयानों को "

"यूँ नजरों में बसा बैठे पंछी की उड़ानों को |
मेरे मन को छूना है सूरज के ठिकानों को ||

वो भी पत्थर लिए बैठे हैं बाँध के हाथो को |
आँख टूटता देखे कैसे शीशे के मकानों को ||

तुम बदरा संग खूब उड़े भीगी बरसातों में |
मन-डोर बंधी अपनी तारों की मचानो को ||

वो उडती पतंगों सा मन लहक लहक जाये |
अहसास की खुशबू में पर्दादारी जुबानों को ||

क्या परखें दुनिया को चुप रहना अच्छा है |
रूह परखे रहमत को क्या देखे बयानों को ||
" ----- विजयलक्ष्मी

Friday 10 July 2015

" ए जिंदगी तू जिंदा सी लगने लगी थी "

" बुतकदे औ मैकदे सब सवाली मिले
मुझे लम्हा ए सफर सब खाली मिले ||

नयन ख्वाब में मन बरसात में रहे
जर्फ प्यास हर्फ अहसास से खाली मिले ||

ए जिंदगी तू जिंदा सी लगने लगी थी
मगर हर सफर क्यूँकर बेकरारी मिले ||

ईमान की अपान पर बैठ सोपान चढे जो
ढूँढा तो गहवर ख्याली साए बीतरागी मिले ||


सहमे से नग्मे बिकते से हम भरे बाजार
कीमत लगाते हमारी ही हमराही मिले ||


वो आसमां मेरी मुट्ठी मे पसरा हो जैसे
जीवन सफर तन्हा बेख्याली मिले
 ||" +-- विजयलक्ष्मी 

Wednesday 8 July 2015

" वंशज लक्ष्मीबाई ,आजाद के है जयचंद के न समझना "

हम अहिंसा के पुजारी है जितने हमे कायर न समझना 
तलवार का रुख रखती है कलम को बेकार न समझना 
हमने पूजा है गाँधी को सुभाष को भी कम न समझना
वंशज लक्ष्मीबाई ,आजाद के है जयचंद के न समझना 
यूँही किसी को छेड़ते नहीं छुट जायेगा छेड़ न समझना 
किसी की चोरी नहीं की कभी छोड़ देंगे चोर न समझना
संस्कार सीखे, कायदे अदब सब है कमजोर न समझना
गुल महकते हैं चमन में काँटों की धार कम न समझना
चहकना महकना ठीक मुहब्बत ए वतन कम न समझना
सुर सजते है महफिल में ,युद्ध से हटेंगे तुम न समझना
हिम्मत ए फुर्खा उतर कर आ ,मैदा में शैदा न समझना .- विजयलक्ष्मी