Friday 5 June 2015

बोलो पर्यावरण दिवस की जय



पर्यावरण दिवस ..." हर प्रयास सार्थक है "||
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पर्यावरण दिवस ...इच्छा के बाद भी एक वृक्ष सार्वजनिक स्थान पर न लगा पाने का अफ़सोस ...लेकिन अफ़सोस क्यूँ .....पर्यावरण को सुरक्षित रखने के तो बहुत उपाय है ...आप सहयोग कीजिये ...हर छोटा उपाय ही बड़े उपाय को और भी बड़ा करता है ,,,एक प्रयास ..पोलीथिन का प्रयोग कम से कम हो ..न हो तो बहुत अच्छा ,,,अपने घर के टेरेस पे ही सही कोई छोटी सी पौध गमले में ही क्यूँ न ..लेकिन लगाइए जरूर ...घर भी सुंदर लगेगा और पर्यावरण के समन्दर में एक बूँद ही सही आपका सहयोग भी होगा ...अपने घर के आसपास के किसी भी हरे वृक्ष को कटने न दे ...कोई वृक्ष पानी के आभाव में है ..कुछ नहीं तो ..उसकी प्यास बुझाकर उसे मरने से बचाइए ...पंछियों के लिए जल रखिये ...वो भी हमारे पर्यावरण का आवश्यक अंग है ...घर के भीतर उन वृक्षों को लगारण ये जो छाया में भी जीवन यापन कर सकते हैं ...ये सोचकर सार्वजनिक वृक्ष ही पर्यावरण में सहायक है हाथ पर हाथ धरकर न बैठिये ...हर कोशिश ..छोटी या बड़ी ..आप सभी का सहयोग अपेक्षित है .
घर में तुलसी का पौधा लगाइए ...जो वातावरण और सेहत दोनों का ख्याल रखेगा |
सोचिये जरा ...बड़ा प्रयास कर न सके और छोटा किया नहीं ...क्या उचित होगा ?........और मनाइए आप भी अपना पर्यावरण दिवस ...प्रयास का एक दीप जलाकर !!--- एक नागरिक ( विजयलक्ष्मी )



पर्यावरण दिवस .. 
मतलब कुछ सेमीनार 
मतलब कुछ वार्ता समाज के ठेकेदारों की 
मतलब कुछ गोष्ठियां 
मतलब कुछ जमावड़ा 
मतलब कुछ चिन्तन का दिखावा
मतलब लम्बी लम्बी बातें
मतलब वृक्षों की चिता पर उठती लपटों सी चिंता
मतलब गंदे नदी नाले
मतलब खनन पर सम्वाद
मतलब कुछ वाद कुछ विवाद
मतलब समय का सदुपयोग के कागज भराई
मतलब कुल मिलाकर मिडिया पर नया प्रपंच रचने का साधन
मसलन कुछ लकड़ी की टाल
कुछ समाज के ठेकेदार
कुछ जंगल काटने वाले
कुछ खनन के मतवाले
कुछ पीक थूकने वाले
कुछ बीडी सिगरेट का सुट्टा फूंकने वाले
कुछ लकड़ी के व्यापारी
कुछ नेता भारी भारी...करेंगे सारी तैयारी ,
दिनभर भाषण की मारामारी ,,,
एसी में विचार विमर्श दिखावे का परामर्श ,,जनता को सीख ...
रुपयों का खर्चा कागज पर चर्चा ,,
महज दिखावे को कोई एक आध पेड़ लगेगा ,,
चार दिन बाद बिन पानी बेचारा मरेगा ..,,
और पर्यावरण दिवस गुणगान अख़बारों और मिडिया में चर्चा का विषय रहेगा
असर ढ़ाक के तीन पात ..
बोलो पर्यावरण दिवस की जय ,,हिन्दुस्तान में तो ऐसे ही मनेगा ---- विजयलक्ष्मी




सम्भालों जिंदगी बदल रही है..
प्रकृति को मारोगे तो तुम जीवित रह पाओगे क्या .?. 
वृक्ष विहीन धरा न करो दोस्तों..
बिन वृक्षों के तो सोचो साँस भी ले पाओगे क्या .. ?
हरित बाना धरा का न नोचो ..
धरती को मिटा कर भला फिर तुम पाओगे क्या..?
वजूद धरणी का जरूरी है दोस्तों ..
अपने लिए भी प्रकृति तत्वों को न बचाओगे क्या ..?
क्या दे रहे हों अपनी वंश बेल को..
जीवन की जरूरत आक्सीजन भी दे पाओगे क्या ? - विजयलक्ष्मी


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