शिकवा भी क्या करें बतादो रहगुजर से ,
गिला करके भी तो गुजरना उसी डगर से ||
गिला करके भी तो गुजरना उसी डगर से ||
उम्मीद ओ करम की रहनुमाई क्यूँकर
उठाया न कोई कांटा तक किसी डगर से ||
उठाया न कोई कांटा तक किसी डगर से ||
क्यूँ बहारो का मौसम गुजरे मेरी गली से
हमने तोड़े होंगे पत्ते कभी किसी शजर से ||
हमने तोड़े होंगे पत्ते कभी किसी शजर से ||
हाल ए दिल न जाना उस गरीब माँ का
बेटा गया था पढने ,लौटा न था शहर से ||
बेटा गया था पढने ,लौटा न था शहर से ||
मालूम है सभी को मय अच्छी नहीं होती
पीते है जहर क्यूँकर नहीं बचते उस कहर से|| --- विजयलक्ष्मी
पीते है जहर क्यूँकर नहीं बचते उस कहर से|| --- विजयलक्ष्मी
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