Sunday 26 October 2014

"बहुत प्यास है समन्दर की देखो "

ए जिंदगी चल वक्त हों चला ,
डूबती उतरती है कश्ती नदी में ||

बहता है जो बीच धारा सा बनके ,
लहरों का उठना गिरना नदी में||


बहुत प्यास है समन्दर की देखो,
यादों का झरना मिलता नदी में ||

खिलते गुलों सा तसव्वुर को देखा ,
कमल भी देखा खिलता नदी में ||

बचकर भला कैसे पार हम उतरते,
पतवार छूटी, ख्वाब बहता नदी में|| .....विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment