Thursday 14 August 2014

" छान ही उड़ गयी तोडकर जज्बात.."



" टूटकर बिखरते यही जिन्दगी ने लिखा है नाम ,
जलो अंधेरी वहशत में दहशत से मिला वरदान 
तारीकियों पर गुदा हुआ नाम पढ़ा तुमने कही 
हमे सरेआम ,गहरती रात मिला तुम्हारा पैगाम 
हम अनजान जिन राहों के वो खिलाडी निकला 
बहुत सहज सहज किया हमारा कत्ल ए आम 
हम रो भी न सके जी भरके अपने कत्ल पर 
कब्र में मुर्दा हाल थे इजहार ए वफा लिखी तमाम
भूख के गुलर सुना मीठे लगते है बहुत 
खेत सूखे अपने भरी बरसात प्यासा मरा किसान 
आढतिये के हिस्से लाभ कई गुना 
छान ही उड़ गयी तोडकर जज्बात एसा आया था तूफ़ान "--- विजयलक्ष्मी 

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