Tuesday 11 March 2014

" हार-जीत का खेल नहीं अब क्या खोना क्या पाना है"

जीवन राग बजे रुनझुन पतझड़-वसंत तो आना है ,
चलता रहता समय का पहिया ,सबको ही जाना है .

कुछ पल का हंसना हंसाना , कुछ पल रोना गाना है 
जीवनमरण ये खेल अनूठा किसने भला पहचाना है

राग-द्वेष खेला पलभर का समय तो आना जाना है 
हार-जीत का खेल नहीं अब क्या खोना क्या पाना है

सुन चमक चांदनी धूप सुनहली मेरे आंगन आना है
कोई अँधेरा बचे न बाकी सबकुछ रोशन कर जाना है -- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment