Thursday 27 March 2014

"सत्य तो अक्सर ही छला जाता है "

सत्य तो अक्सर ही छला जाता है 
झूठ बहुत ही नजदीक चला जाता है

अक्सर सत्य के काँधे चढ़ जाता है 
झुठ से सत्य भी आहत हो जाता है

बहरूपिया नवरूप धर चला आता है
सत्य के सम्मुख नहीं ठहर पता है 

उखड़ जाते है पैर लेकिन झूठ ठहरा 
बेशर्म झूठ मुहं उठाये चला आता है

लज्जा नहीं आती इसे सत्य यही है
ओढ़ सत्य का दुशाला चला आता है

हकीकत से मुहं चुराए कैसे ये झूठ
सत्य की आंधी में उड़ता चला जाता है

स्यह्पन साथ लिए श्वेत की चाहत में
सूरज तो कभी चाँद को गहना जाता है.-- विजयलक्ष्मी

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