Saturday 15 March 2014

बलिदान का पत्थर ..देवीय शक्ति नश्वर .. मैं क्या हूँ ..?"


जानते हो 
अगर 
औरत स्वार्थी होती ...तो 
अपने तनुज को सत्ता न देती ..
फिर भी ..

लोग चिल्लाये सुबह से साँझ तक 

महिला दिवस ..मुबारक 
महिलाओं को आजादी मिलने चाहिए 
महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए 
महिलाये पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला रही हैं 
महिला सम्मान के चर्चे होंगे 
अखबार में पुराने कुछ किस्से खर्चे होंगे 
अख़बार पाट दिए जायेंगे ..महिला सशक्तिकरण के नाम 
सुबह से महिला के नाम का दीप जलेगा 
दीप जलता है सेमिनारों में
नुक्कड़ पर चर्चा में
चाय के साथ चर्चा में
नेताजी के भाषण में
सडकों पर इसतरह जैसे राशन की दूकान पर घासलेट मुफ्त में बंट रहा हो
मुफ्तखोरी ..कितनी बुरी बात हैं न
ये औरते जान खाती रहती है
कुछ काम नहीं होता सिवाय पैसे मांगने के
अरे भीख मनगों के घर की है न ..कुछ लाती तो क्या ..
" उलटे काम की काज की ढाई सेर अनाज की "
मुस्टडी कही की पड़ी पड़ी खाती है ..
काम इसका बाप करेगा क्या ...कैसे करमजली किस्मत में धरी गयी
इसे मौत ही आ जाये तो अच्छा .
नीच खानदान की है ..जबान तो देखो इसकी गज भर लम्बी है पूरी
एक कोने से आवाज आई ...इसकी ख़ूबसूरती रख के चाटू क्या
कितने गिरे हुए खानदान की ..
कहीं मरखप जाती तो अच्छा ..
जी हाँ ...यही हैं महिला दिवस की चर्चा का सच
काला स्याह ,,औरत की जिन्दगी का एक पहलू
..
जी हाँ ..आज की औरत ..सुबह साहब ने भाषण दिया था आरक्षण का
दो दिन भाद पत्नी मरी जहर भक्षण से
दीप जलाने वाले घर बहु जलकर मरे अभी हफ्ता ही तो हुआ था
जिसने औरत की आजादी की मांग की थी
शाम को बीवी की पिटाई हुयी बहुत बोलती हैं ..
दिनभर काय काय ..जुबाँ चलती है कैंची की तरह ..
..
एक सच ये भी ..
जिसकी बेटी मरी थी महिना भर पहले दूसरी बिटिया की शादी उसी दामाद तय करदी
उम्र में अट्ठारह बरस की ही छोट बड़ाई है
छोडो न औरत की जात है ..क्या फर्क पड़ता है मरद बुढ्ढा नहीं होता
अरे दो जून की रोटी नसीब होगी न बहुत है
सुना है धोती भी अपने घर से ही ला रहे हैं .. अरे किस्मत खुल गयी बुधिया की
..
वाह री औरत ..तूने पूरी कायनात का भ्रमण कर लिया ..
बेटी बनकर , ,
बहन बनकर
पत्नी बनकर
माँ बनकर
प्रेयसी बनकर
आजादी ,आरक्षण ,स्वाभिमान ,कानूनी संरक्षण ,,
सब कुछ हासिल करके भी कुछ हासिल नहीं ..

क्यूंकि तुझे सोचने का भी हक नहीं ..
जो कह सके हाँ ..मैं औरत हूँ ,,और गर्वित हूँ औरत होने पर ,,
कोई अन्तरिक्ष घुमे और गगन को चूमे ..
बोझ उठाले चारे पूरे देश का
मैं ही थी दुर्गा ...सीता सावित्री ..गार्गी
जीजाबाई ..या .लक्ष्मीबाई मैं ही हूँ अम्ब भवानी
मैं ही हूँ जिसे देवों ने पूजा
मैं ही हूँ ...गंगा की अविरल धारा
मैं ही हूँ सृजन की शक्ति
मैं ही हूँ वात्सल्य की धारा त्याग की मूर्ति
बलिदान का पत्थर ..देवीय शक्ति नश्वर ..
मैं क्या हूँ ..
क्या कोई वजूद है मेरा ..
मैं सिर्फ एक मुलम्मा हूँ ..
एक ऐसे मोम का टुकड़ा ..
जिसके पास सारे नाम के हैं सिवाय एक हक के ..
सर झुककर हाँ में हाँ मिलाना
इल्जाम भी सहने और बोलना, पाप है जिसके लिए .-- विजयलक्ष्मी 

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