Thursday 27 March 2014

"...देशराग से क्यूँ हैं विमुख गजले अभी !"

हालत हैं चिंताजनक ,देशराग से क्यूँ हैं विमुख गजले अभी !
सत्ता ने भी नजरे फेरी .......हैं खराब खड़ी हुयी फसले सभी !!

बंदूक बोई खेत में आजाद हिन्दुस्तान हो औ खेले जान पर !
शहादत को नकारा कृषक बेसहारा कीमत माटी फसले सभी !!

आढतें जिनकी खुली ऐश में वही लकड़ी की जिनकी टाल हैं !
आत्महत्या या मरे कोई मुर्दा होता मानुष हुयी फसले सभी !!

भूख में संगीत नहीं होता गूंजती है चीख मुर्दा हुए लोगो की !
चाँद रोटी होता ,सूरज तवा सा सेकता रोटी सी गजले सभी !!

हर बूंद पसीने की लहू को खाती जाती है गरीबी के चूल्हे में !
हर भूखा बिकेगा या बनेगा दधिची, हाड बनेगे असलेह सभी !!--- विजयलक्ष्मी

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