Thursday 9 January 2014

क्या ईमान मर जायेगा सभी का यहाँ ,

क्या ईमान मर जायेगा सभी का यहाँ ,
सब देखेंगे तमाशा चंद तमाशाइयों का 
कोई बोलेगा भीं या ...बस यूँही ...घुट जाएगी आवाज हलक के भीतर 
दफन हो जायेंगे भेद सारे सर ए आम सबकी निगाहों के सामने रहकर भी 
मैं चीखूंगी ,,,मुर्दों की इस बस्ती में ..कलम तडप कर बोल उठी 
मेरी आवाज यूँही आती रहेगी ..फर्श से अर्श तक ..
तुम अपने कान बंद रखो ,आँख मूंद लो ..
हेमराज के कटे कबद्ध को गलियों में दौड़ते हुए फिर साल बीत गया 
्रद्धांजली कैसी किसी को याद भी नहीं रहा ..
है कोई माँ का लाल ...दुश्मन पुकारता है सीमा पर
सरकार नकारा ...रोती ही रहती है
नकारा ,पौरुषहीन ,डरपोक दब्बू ...निहायत गिरे हुए जमीर के लोग ...
बंटवारे की राह तलाशते ...बेगैरत ..
किसी की निजी सम्पत्ति नहीं है देश ..जिसे बंटवारे की दरकार है निकल जाये छोड़कर ,
कौन रोकता है ,,,बेगैरत लोगो को
खुद को मिटाकर मिट गये जो ..
देश की शान देश की आन है वो ..अमर रहेंगे .
कुछ है दीखते जिन्दा मगर मरे ही रहेंगे .
मेरा जमीर ..देश की सच्चाई पुकारती है ..
उठाओ एक साथ अपनी आवाज ..
बुलंद करो आसमान तक
खंगालो अपने जमीर को
क्या अपनी माँ की कीमत लगाओगे
जिसका खाते हो उसे ही रसातल में धसाओगे
खून है या पानी बन गया है शिराओं में
या मर चुके हो मौत से पहले .
आओ एक समवेत स्वर में गुंजायमान करदे आसमान
इन्कलाब की चिंगारी जलती रहे दिलों में ,
खौफ रहे देश के दुश्मनों में -- विजयलक्ष्मी

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