Wednesday 18 December 2013

मन फिर बोला मैं मुजफ्फरनगर हो रहा हूँ

" वो मर गयी ..एक लडकी .
मरने दो न ..जाने कितनी मरती है एक और 
खबर पूरी नहीं होती बिना किसी की अस्मत के लुटे 
बिना किसी की जान के लुटे 
बिना बलात्कार की घटना के ..सांप्रदायिक हिंसा के 
औरत औरत की दुश्मन है तो पुरुष भी दोस्त हुआ कब है 
क्यूँ नहीं सुरक्षित देहलीज के भीतर या बाहर 
क्या यही मयार है उसका ...मौत को खौफ होने लगा शायद अबतो 
मोमबत्तियां जली ..एक दामिनी को लेकर .
अगले दिन ही एक और खबर थी भामिनी को लेकर
कोई देह को उपकरण समझ रहा है ..कोई खिलौना बनाकर खेलता है
हर कोई नारी तन का अपमान कर रहा ..
कोई प्रेम दिखाकर लूटता है कोई प्रेम में तेज़ाब फेंकता है
कोई हिकारत भरी नजर से देखकर मापता है आकार
कहाँ खो गये नारी उत्थान के समर्थक ..
दिखती नहीं किसी को शिविर में ठण्ड से सिकुड़ती नारी
न दिखाई देती उनकी लाचारी न बिमारी
सभी संस्थाए सो गयी ...आलाप्ती थी नारी का राग खो गयी है ..
लहू से तर हो रहा हूँ ..आज मन फिर बोला मैं मुजफ्फरनगर हो रहा हूँ
कोई सुध नहीं लेने वाला ...बस दिखावे को सांत्वना हर कोई देने वाला
न प्रधानमंत्री को सुध है और संतरी सारे बेसुध हैं
मिडिया को नारायण साईं और आसाराम भा गये ..
जो थोड़ी सी कमी थी उसमे योग वाले रामदेव छा गये है
पप्पू को खबर अपनी भी नहीं है आजकल ..
दिल्ली में "आप " की बिल्ली गुर्रा रही है आजकल
कुछ शेर दहाड़ रहे थे सुना था ..
जंगल में दावानल की पुकार लगी सुना था ..
सन्नाटा क्यूँ छा गया ...मालुम अँधेरा गहन हो गया है ..
बस इन्तजार है रोशन किरण की सबको ..
जाने कौन पल वो सुनहरी सी सहर होगी
जिन्दगी सत्य को नसीब होगी ,,
सूर्य किरण खुद के करीब होगी
चाहकर उठेगा दिन बिना खौफ के
निकलेगी जिन्दगी जीने पूरे जोश में ..
कौन सा दिन होगा जब इंसान आएगा होश में ."
- विजयलक्ष्मी

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