Tuesday 1 October 2013

दूर वृक्ष पर फल लगे देख समझ अब पेट भर जाये

समाज ..जिनके मन अधूरे खुद में उन्हें पूरा होने की आस,
कुछ घूमते है प्यासे जिन्हें जन्मों की प्यास. 
कुछ बेगैरत से जिन्हें लज्जा छूती भी नहीं 
कुछ यहाँ कैद है इज्जत के मारे 
कुछ गाते है उल्फत के तराने वीररस की चाशनी पागकर
कुछ मजनू हुए कुछ चेला गलियों के 
कोई सूरज मिल जाता ..मिट जाती जन्मों की प्यास ..
दीप जलाकर रखा परकोटे तपिश मिले तप जाये,
दूर वृक्ष पर फल लगे देख समझ अब पेट भर जाये .- विजयलक्ष्मी 

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