Saturday 7 September 2013

गर फुर्सत हो चले आना

गर फुर्सत हो चले आना हम आंसू बाँट लेंगे ,
ले जाना गुल जो पसंद हो कांटे हम छांट लेंगे .
निठल्ले है आजकल फकत रस्सियाँ बुनने लगे
खाट मिलती नहीं घरों में यूँ जिन्दगी खांट लेंगे.- विजयलक्ष्मी 

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