Thursday 4 April 2013

मेरे अंतर्मन में सिमटी कविता ..


कविता वही जो  मन रंगों से रंगी गयी ..
है शब्द अधूरे खुद में लिखना कैसी कविता ..
साहित्य रथ पथि कविता या कविता मार्ग दर्शिका है ..
हर भाव बरसता है कविता सा ..
जब मन हर्षाता ..या दुःख से पूरित हो बरस जाता 
जब नयन पीर से छलक उठे ,,
जब मन दग्ध क्षीर से भभक उठे ..
या अंतर्मन में ज्वाला हो ..
या रस माधुरी का छलकता प्याला हो ,,
पावनता हो वेड पुराणों सी ,,
कदमों के निचे चलती घर की आनों सी ..
हो धार पर चलना तलवार की या ..
नयन किरण उठे तीर कमान सी ..
ह्रदय धधक  उठे ज्वालामुखी सा ..
या दीखता हो चेहरा दर्पण सा उजला ..
हुक उठे पिता के मन में पुत्र भले ही कपटी हो ..
पर कविता तो ह्रदय से  उस क्षण भी लिपटी है ..
किस छोर कहूं किस और चलूं ..
किस को छोडूँ ..किसको बांधू..
मन भाव अधूरे से कविता ..
उतरे अंचल में कविता ..
बिखरी आंगन में कविता ..
मेरे अंतर्मन में सिमटी कविता ..
तेरे भीतर की हलचल कविता  ..
माँ का प्यार बहन की राखी ..
घर के दीपक की लौ भी  कविता ..
क्या धरती नदिया पर्वत दीखते ..
बहती पल पल में कविता ..
गिरते झरने बहती सरिता ..
क्रुद्ध हवा आंधी बनकर उद्जती है बनकर कविता ..
आत्मा के एक छोर से ..
कायनात के ओरछोर तक ..
बस मुझको दिखती कविता .-- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment