Tuesday 19 March 2013

हर वक्त थे वहीं पर तुम याद किये थे जब...

"किस्सा ए गुफ्तगू हुई खुद से भला कब ,
हर वक्त थे वहीं पर तुम याद किये थे जब.

तुम भी समझा किये वो बज्म थी हमारी 
रहे किसी भी बज्म में तुमसे जुदा थे कब.

नजूमी का बहाना तुम इतना भी न समझे,
हर बात में तुम, रंग ए स्याही सिले थे जब.

किस सोच में खो गये खुशबू से महक उठे,
शब ए ख्वाब में भी तुम दिखाई दिए थे जब.

तुम रहे कल से ही वाबस्ता आजतक भी ,
हम तो कल का कोई ख्वाब सजाते थे तब
"..-- विजयलक्ष्मी

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