Monday 7 January 2013

समझ आये या न आये बहुत खूब बहुत खूब .

साहित्य का सन्नाटा ,बर्बरता का चांटा ,रिसता हुआ दर्द ,
चुभता दंश ,मानवता के नाम पर जैसे कंस ,
कृष्ण की लीला ,मुंबई की शीला ,बजती सिटी ,मिलती घुडकी ,
रोता संस्कार ,उल्टा व्यवहार ,
जीवन का संताप ,झेलता ताप ,नग्नता का नाच ,
लवेरिया की किताब ,वक्त की भड़ास ,
उल्टी जिंदगी ,करतबी बाज ,उलूकों के शहर का उजाला ,
डूबकर गिरता सूरज ,रोता हुआ चन्द्रमाँ खोता सा चाँदनी ,टूटती सी रागिनी 
फिर एक ही आलाप ,फांसी का प्रलाप ,
बहरी सरकार ,छिछौरी जवानी ,निगाहें खो गयी मर्दानी ,
बिकता हुआ न्याय ,औछा वक्तव्य ,उथले विचार ,
प्रेम के प्रकार ,सहमते से ख्वाब ,सरकारी रुआब ,
डंडे लगे झंडे ,पुलिसिया रवैया ,छंद सवैया ,
रागों में दीपक राग ,पवित्र सी वो आग ,
लोगों के हाथ ,वस्त्रों में झांकती आँख ,
बजती ताली फिर भी हाथ खाली ,
मदारी का नाच झूठे राज ,
मक्कारों की दुनियां ,पिंजरे की मैना ,
परिक्रमा करती धरती , गंडासों से कराहते वृक्ष ,
लहू की आन ,दिखावटी शान ,शब्दों की लफ्फाजी ,
व्यर्थ की गप्पबाजी ,वक्त की बर्बादी ,
फेस्बुकिया निगाह ,मुहब्बत की चाह ...
ढूंढती निगाहें ,खोती हुयी सी रहे ,
मंजिल की तलाश ,खोती नहीं आस ..
लो हम अब भी यही हैं ...सचमुच खोए नहीं है ,,
यही है शायद ए जिंदगी तेरा रूप ..
समझ आये या न आये बहुत खूब बहुत खूब .- विजयलक्ष्मी

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