Thursday 4 October 2012

दीवानगी ए अफसाना गुनहगारभी हम है ...

कुछ मुस्कुराती जिंदगी मुर्दा होती है इसतरह ,
फूल खिलते है किसी ताजमहल पर जिसतरह .
मौत आकर फरमान सुना नहीं सकती जिन्हें ,
बादे सबा गली उनकी नहीं गुजरती उस तरह .
बख्त ए वफा बेवफा सी देखती है समन्दर को ,
प्यासी प्यास की तलब बुझेगी अब किस तरह .
दीवानगी ए अफसाना गुनहगार भी हम हैं यहाँ ,
वादा किया कब, निभाया था उसने जिस तरह .
ए जिंदगी मुस्कुरा कि तसल्ली तो रहे सांसे हैं , 
जेठ की दोपहरी दिखती है ठंडी छाँव जिस तरह .-- विजयलक्ष्मी

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