Wednesday 19 September 2012

तुम्हे बेवफा कहूँ उज्र है ...

समन्दर का तूफां कम लगता है जाने क्यूँ ...
जमाने को आग लगाने का मन करने लगा है अब..

जला ए बावफा हमे , मौत ए मंजर हसीं लगने लगा 
जलने में भी जन्नत का सा मज़ा आने लगा है अब .. 

तुम्हे बेवफा कहूँ उज्र है दिल को समझेगा क्या भला
राह ए मुहब्बत ए मंजिल सब एक नजर आने लगा है.-- विजयलक्ष्मी 

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