Monday 6 August 2012

लम्हे बहके बहके से

जमीं की रंगत खिली सी है ,
रंग ओ खुशबू महके से ..
उपवन बागीचे खिले खिले ,
पंछी भी लगते चहके से..
ये दिन दुपहरी चटक हुई है ,
लम्हे बहके बहके से ..
मौसम का असर है या कि ,
गुल क्यूँ है लहके से ..
समय को कह दो थम जाये, 
कुछ रह न जाये कहने से ..

नदी से बहने लगे झरने भी अब
रंगत मिले है सहरा से ..
छोटी छोटी सी बातें है लगे ,
चुभे नश्तर सी गहरा के .. - विजयलक्ष्मी

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