Thursday 28 June 2012

सशक्त संत विरक्त रक्त की भावना 
रम राम कृष्ण संग मुरूली धनुष और सृजन की कामना ..
कैसे होगी मगर शिव तांडव बिना विध्वंश ,
भवानी शूल के संग गर चली न..लहू मांग भर चलती धरती कलपती टूटी रूठती
भर पांव उसके कठोर पथ रक्त रंजित हुए कंकरों की
दलित सी हुयी बात बन बाण क्यूँ सजती चली
छवि रूप कवि निरखे भला क्यूँ ..भवानी रूप भूप धर कर चले ..
शिव बनेंगे शव चलेंगे कुरूप शजर मन दौड चल हट मत कर ..
कपाट जलता क्यूँ भला अहं का पट खोल
अब बस ठहर तू मत बोल बस अब चल कहीं अब बस ..
रक्त रंजित वक्त अब बस सहर की क्या खबर बस ..
सुन जरा कुछ रुक जरा न रोक बस ..है कहा तक काली बदली तू काह दे दे जरा ..
ये धरा पूरी ही ऐसी सुन ज़रा बस सुन जरा .-विजयलक्ष्मी

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