Friday 8 June 2012

चल चलें बहुत दिन हों गए ....

चल चलें बहुत दिन हों गए ..
मजदूरी करने भी जाना था ..
ले कुदाल रख कांधेपर अपने दफनाते है कुछ सुर्ख हुए सपने भी उसमें ..
आती है आवाज सड़क से चिल्लाती सी ..
देखो कौन पुकार रहा है ..वो कहती है मरियम खुद को ...
रोती है नौ नौ आंसूं ...
भूख प्यास अधूरी उसकी ...बेटी जलाई दहेज दानव ने ..
जले पर नमक छिड़का है फिर आज ..
कोई व्यथित दीवानी सी है देती आवाज चलें..
कुछ जन्मने ही नहीं देते, कुछ मारते है जलाकर ..
करने है दफन बुरे से ख्वाब ...
मेरी अभिव्यक्ति ...क्या बोलूँ....
मिलते नहीं मिलकर भी अब ..
वही आवाज दर्द में लिपटी सी .....जलाती है भीतर मेरे कुछ ..
तुम आये थे उस शाम आगोश में सोने और उनींदी सी खुमारी ..
टूटी ही नहीं अब तक क्यूँ भला ..कैसे है अहसास
रोजीरोटी की चिंता है मुझको
मजदूरी करने जाना था ...
चल चलें बहुत दिन हों गए ...--विजयलक्ष्मी .

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