Monday 25 June 2012

कैसे समझाऊं मैं

मेरे हंसने से गुरज क्यूँ किसी के साथ भी हुआ ..
मेरी आत्मा के श्रंगार को भेजा सामान था ..
मुझे खुशबूओं के संग उड़ना मना किया ..
तितलियों को मुझसे मिलना गुरेज था ..
हंसने पे उसने मेरे लगाया था क्यूँ ताला ..
अपनापन इतना दिखाया था क्यूँ बता ना ..
मेरी साँस बंधकर रखी अपने साथ जेब में
मेरी आस को इतना बंधाया क्यूँ था बता ना ..
आ गया क्यूँ बीच में ये हिसाब मेरा है ..
तुझसे कुछ न चाहिए ..तेरा सिर्फ तेरा है ..
समझती हूँ मैं भी दुनिया की रीत को ..
कैसे समझाऊँ कह दे अब अपनी प्रीत को ..
नहीं कलुषता है मन में न दुश्मनी कोई ..
चाँदनी सी निर्मल ,गंगा सी पवित्र है ,..
उज्जवल धवल मेरा भी अपना चरित्र है ,
आज तक तो कोई दाग पाया नहीं कभी ..
आंचल को जिंदगी के फैलाया नहीं कभी ..विजयलक्ष्मी

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