Sunday 24 June 2012

चरित्र का हनन या गिरना ...


चरित्र का हनन ,या गिरना देखता है क्या ..
मुकरना अपनी बात से,कभी देखा है क्या ..
चरित्र बदल कर घुमते इंसानी शक्ल के बुत तामील है बहुत 
आता है मजा जिन्हें बातें बनाने में ..
युद्ध करते थे जो शब्द ओ  कमान से ..
कहते फिरे है गोया चला  मनुष्य ईमान से ..
देखा है चरित्र उनका झूठ को लिए ..
बदलते है रोज खुद को ,बेचते है जाने किस मुकाम के लिए  
ब्याह पीछे रोज सताते  दहेज को ..
न माने तो डर दिखाते भेज मुर्दा  बुतों को ..
आज वही चरित्र  की बात कर रहे ...पल पल जो चरित्र खुद का बदल रहे ..
ईमान उनका देखिये कभी भूनते है भुनगे से ..
और कभी बरसात बना हम ही  को खरीदते बेचते फिर रहे ..
वाह ईमान आपका खूब देख लिया ...
ली परिक्षाए कितनी ...बाकी शेष है ..
या जिंदगी कटेगी सत्य की अग्नि प्रवेश करते हुए ..
हाँ याद आया उन्हें जीतने का शौंकहै ...
तुम जिंदगी को जीतो मुझे मरने की दरकार..
देखतें है जिंदगी किसकी मुकम्मल यार ..
नमी तेरी अआखों में एक दिन तो आएगी ..
जिंदगी जब मेरी  कूच  कर जायेगी ..
बस वही आखरी दीदार होगा फिर ..
उस दिन देखना  नजरों में आँसू और धडकनों  में तेरी  इकरार..विजयलक्ष्मी .

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