Sunday 3 June 2012

तमन्ना हुयी है

यहाँ आंधियां नहीं मलयज पवन है सब ..
हमें आंधियों के दीदार की तमन्ना हुयी है .

ए वक्त इतना भी न तडपा उसकी खातिर 
वो नाराज हों तो यूँ कि मौत ए तमन्ना हुयी है .

यादों के साये बेसाख्ता नाम ले रहे है वही 
उनको तो सितम ढाने कि ही तमन्ना हुयी है .

मेरे आंसूओं का गम न कर बहने दे ये तसव्वुर 
सिवाय नजरों के कुछ न पाने की तमन्ना हुयी है .

मेरी गुजारिश कोई सुने यहाँ उदासी क्यूँ है 
जिंदगी उसके बिना नहीं जीने तमन्ना हुयी है .-विजयलक्ष्मी

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