Saturday 2 June 2012

रौशनी चहुँ और फ़ैल चुकी है .....

रौशनी ,चहुँ और फ़ैल चुकी है आग की ..
खौफ दरों के जलने का हुआ जाता है ..
भरभराकर दीवारें न गिर पड़े धडाम से ..
पैमाना पैमाइश का समन्दर हुआ जाता है.. 
बस्ती बसी है राजपथ को मंजूर हुआ क्या .?
संसद में तो नोटों वोटों का खेल हुआ जाता है ..
दो जून की रोटी के जुगाड में जनता रो रही है ..
आज दो जून भी अब मजाक हुआ जाता है..
सत्य मरता नहीं,जियेगा साथ सांसों के ही ..
बता, हाल मौसम का देख क्या हुआ जाता है ..-विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment