Friday 16 October 2015

हे माँ इतनी शक्ति दे स्त्री को इज्जत की भीख न मांगनी पड़े "



क्या खुदा खुद ही उतरेगा या औरत को चंडी बनना होगा ,
मानसिक पटल पुरुष का लगे औरत को रंडी बनना होगा 




कब तक बिकती रहेगी औरत दौलत के बाजार में ,
क्या इंसानियत मर चुकी पौरुषता के व्यवहार में .

---  विजयलक्ष्मी



" मुझे मालूम है यार मेरी कितनी है औकात,
लक्ष्मणरेखा इसी खातिर खींच दी दरमिया !!

सुना गलती सीता ने की लांघने की कभी ,
अग्नि परीक्षा देनी पड़ी अपनों के दरमिया !!

गलती खड़ी थी साथ पाप बनकर उम्रभर ,
धरती में जा समाई झूठ-सच के दरमिया !!

इक मजाक इक कटाक्ष उम्रभर चला किया ,
चीरहरण सहना पड़ा नामुरादों के दरमिया !!

औरत की औकात ही कितनी है समाज में,
जननी का हक ही क्या है पुरुषो के दरमियाँ !!

बिन गुनाह भी सहती सजा गुनाहगार बन ,
मुश्किल मिलना न्याय दुनिया के दरमियाँ !!

देखती रही हश्र जब समाज में देह मिसाल का ,
देती बेमिसाल पाप-पूण्य दुनिया के दरमियाँ !! "


विडम्बना राष्ट्र की ..राष्ट्र जन की सोच ,,विकल्प तलाशने की शुमारी ...लडकी के प्रति उदासीनता ...कामपिपासा की प्रताड़ना ..हल्की सोच और स्वार्थ का पर्याय ही बनता है |...कुछ तीसरी दुनिया का चौथा स्तम्भ बिकाऊ मिडिया....जो कभी निरपेक्ष होता ही नहीं है ...सापेक्षता उसकी एइयाश मजबूरी  बन चुके ////पत्रकारिता ईमान की नहीं दौलत के पुजारियों की कर्मभूमि बन चुकी ...स्वार्थसिद्ध हो जाये तो उनसे बड़ा ईमान वाला कोई नहीं ...करोड़ो के बंगले ...समाज और सामाजिक जागरूकता के सीने पर ही खड़े होते हैं ...वहीं जातिवाद ...सेकुलरिज्म का नाग कुंडली मारकर बैठता है .......नवरात्र माँ की पूजा ...स्त्री को सर्वेश्वरी जगत्जननी मानकर पूजना ...देवों से भी उच्च स्थान देना ...व्रत नियम ,,ब्रह्मचर्य का पालना |
उपासना करना जीवन को जन्म -मरण से तारने का प्रयास ..उसपर हठात बलात्कार ..और हत्या ..दहेज उत्पीडन ..उफ़ ये कैसा समाज है ......जहाँ आधी दुनिया की स्वामित्व रखने वाली की दुर्दशा होती है ..
चिंता भारत की स्त्रियों की ही नहीं विदेशों की स्त्रियों की भी है वो भी सामाजिक उत्पीडन की मारी है .......खुले बाजार में बिक रही हैं ..कोई कुछ नहीं बोलता चुप हैं ..बिलकुल चुप ...क्या पुरुष अपने वर्चस्व के लिए युद्धरत है मगर किसके प्रति ...?
हे माँ इतनी शक्ति दे स्त्री को इज्जत की भीख न मांगनी पड़े ...दुसरे के मोहताज न होना पड़े मान के लिए बेचारा न बनना पड़े .... बिना उच्छ्लन्खता के |




" हमारे देश की बात भी कितनी निराली है ,
एक ही वृक्ष की अलग अलग रंगी डाली हैं .

वाह क्या खूब यहाँ पर पुलिसिया अंदाज है 
छेड़छाड़ की पूछताछ .हत्या पर जुगाली है 

घरानों और निशानों के अंतर भी देखिये 
पैसे वालो की चली गरीब न्याय से खाली है

जिंटा वाडिया की चिंता सभी को सरापा सी 
लटकी हुयी बालाओं का यहाँ कौन सवाली है

नामचीन खरीद रहे वक्त क्या ईमान क्या
गरीब की इज्जत बनी ,,चौराहे की नाली है

हैसियत ने देख लो कलम भी खरीद ली
छोड़ गरीब, अमीरी की कहानी लिख डाली है ."
------- विजयलक्ष्मी




2 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 19/10/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर... लिंक की जा रही है...
    इस चर्चा में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...


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  2. आपने लिखा...
    और हमने पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 02/02/2016 को...
    पांच लिंकों का आनंद पर पुनः लिंक की जा रही है...
    आप भी आयीेगा...
    आज पांच लिंकों का आनंद अपना 200 अंकों का सफर पूरा कर चुका है... इस लिये आज की विशेष प्रस्तुति पर अपनी एक दृष्टि अवश्य डाले।

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